22-03-96  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘ब्राह्मण जीवन की पर्सनालिटी - सब प्रश्नों से पार सदा प्रसन्नचित्त रहना’’

आज सर्व प्राप्ति दाता, बापदादा अपने सर्व प्राप्ति स्वरूप बच्चों को देख रहे हैं। बापदादा द्वारा प्राप्तियाँ तो बहुत हुई हैं, जिसका अगर वर्णन करो तो बहुत हैं लेकिन लम्बी लिस्ट बताने के बजाए यही वर्णन करते हो कि ‘अप्राप्त नहीं कोई वस्तु इस ब्राह्मण जीवन में।’ तो बापदादा देख रहे हैं कि प्राप्तियाँ तो बहुत हैं, लम्बी लिस्ट है ना! तो जिसको सर्व प्राप्तियाँ हैं उसकी निशानी प्रत्यक्ष जीवन में क्या दिखाई देगी-वह जानते हो ना? सर्व प्राप्तियों की निशानी है - सदा उसके चेहरे और चलन में प्रसन्नता की पर्सनालिटी दिखाई देगी। पर्सनालिटी ही किसी को भी आकर्षित करती है। तो सर्व प्राप्तियों की निशानी - प्रसन्नता की पर्सनालिटी है, जिसको सन्तुष्टता भी कहते हैं। लेकिन आजकल चेहरे पर जो सदा प्रसन्नता की झलक देखने में अवे, वह नहीं दिखाई देती। कभी प्रसन्नचित्त और कभी प्रश्नचित्त। दो प्रकार के हैं, एक हैं - जरासी परिस्थिति आई तो प्रश्नचित्त - क्यों, क्या, कैसे, कब ... यह प्रश्नचित्त। और प्राप्ति स्वरूप सदा प्रसन्नचित्त होंगे। उसको कभी भी किसी भी बात में क्वेश्चन (प्रश्न) नहीं होगा। क्योंकि सर्व प्राप्तियों से सम्पन्न है। तो यह क्यों, क्या जो है वह हलचल है, जो सम्पन्न होता है उसमें हलचल नहीं होती है। जो खाली होता है, उसमें हलचल होती है। तो अपने आपसे पूछो कि मैं सदा प्रसन्नचित्त रहती वा रहता हूँ? कभी-कभी नहीं सदा? 10 वर्ष वाले तो सदा होंगे या नहीं? हाँ नहीं करते, सोच रहे हैं? प्रसन्नता अगर कम होती है तो उसका कारण प्राप्ति कम और प्राप्ति कम का कारण, कोई न कोई इच्छा है। इच्छा का फाउण्डेशन ईर्ष्या और अप्राप्ति है। बहुत सूक्ष्म इच्छायें अप्राप्ति के तरफ खींच लेती हैं, फिर रॉयल रूप में यही कहते हैं-कि मेरी इच्छा नहीं है, लेकिन हो जाए तो अच्छा है। लेकिन जहाँ अल्पकाल की इच्छा है, वहाँ अच्छा हो नहीं सकता। तो चेक करो-चाहे ज्ञान के जीवन में, ज्ञान के रॉयल रूप की इच्छायें, चाहे मोटे रूप की इच्छायें, अभी देखा जाता है कि मोटे रूप की इच्छायें समाप्त हुई हैं लेकिन रॉयल इच्छायें ज्ञान के बाद सूक्ष्म रूप में रही हुई हैं, वह चेक करो। क्योंकि बापदादा अभी सभी बच्चों को बाप समान सम्पन्न, सम्पूर्ण बनाने चाहते हैं। जिससे प्यार होता है, उसके समान बनना कोई मुश्किल बात नहीं होती है।

तो बापदादा से सबका बहुत प्यार है या प्यार है? (बहुत प्यार है) पक्का? तो प्यार के पीछे त्याग करना या परिवर्तन करना क्या बड़ी बात है? (नहीं)। तो पूरा त्याग किया है? जो बाप कहता है, जो बाप चाहता है वह किया है? सदा किया है? कभी-कभी से काम नहीं चलेगा। सदा का राज्य भाग्य प्राप्त करना है या कभी-कभी का? सदा का चाहिए ना? तो सदा प्रसन्नता, और कोई भी भाव चेहरे पर वा चलन में दिखाई नहीं दे। कभी-कभी कहते हैं ना आज बहन जी या भाई जी का मूड और है। आप भी कहते हो आज मेरा मूड और है। तो इसको क्या कहेंगे? सदा प्रसन्नता हुई? कई बच्चे प्रशंसा के आधार पर प्रसन्नता अनुभव करते हैं लेकिन वह प्रसन्नता अल्पकाल की है। आज है कुछ समय के बाद समाप्त हो जायेगी। तो यह भी चेक करो कि मेरी प्रसन्नता प्रशंसा के आधार पर तो नहीं है? जैसे आजकल मकान बनाते हैं ना तो सीमेंट के साथ रेत की मात्रा ज्यादा डाल देते हैं, मिक्स करते हैं। तो यह भी ऐसा ही है जो फाउण्डेशन मिक्स है। यथार्थ नहीं है। तो जरासा परिस्थिति का तूफान आता है वा किसी भी प्रकार की हलचल होती है तो प्रसन्नता को समाप्त कर देती है। तो ऐसा फाउण्डेशन तो नहीं है? बापदादा ने पहले भी सुनाया है, अब फिर से अण्डरलाइन कर रहे हैं कि रॉयल रूप की इच्छा का स्वरूप नाम, मान और शान है। आधार सर्विस का लेते हैं, सर्विस में नाम हो। लेकिन जो नाम के पीछे सेवा करते हैं, उनका नाम अल्पकाल के लिए तो हो जाता है कि बहुत अच्छा सर्विसएबुल है, बहुत अच्छा आकर्षण करने वाले हैं लेकिन नाम के आधार पर सेवा करने वाले का ऊंच पद में नाम पीछे हो जाता है। क्योंकि कच्चा फल खा लिया, पका ही नहीं। तो पक्का फल कहाँ खायेंगे, कच्चा खा लिया। अभी-अभी सेवा की, अभी-अभी नाम पाया तो यह कच्चा फल है, या इच्छा रखी कि सेवा तो मैंने बहुत की, सबसे ज्यादा सेवा के निमित्त मैं हूँ, ये नाम के आधार पर सेवा हुई -इसे कहेंगे कच्चा फल खाने वाले। तो कच्चे फल में ताकत होती है क्या? वा सेवा की, तो सेवा के रिजल्ट में मेरे को मान मिलना चाहिए। यह मान नहीं है लेकिन अभिमान है। जहाँ अभिमान है वहाँ प्रसन्नता रह नहीं सकती। सबसे बड़ा शान बापदादा के दिल में शान प्राप्त करो। आत्माओं के दिल में अगर शान मिल भी गया तो आत्मा स्वयं ही लेने वाली है, मास्टर दाता है, दाता नहीं। तो शान चाहिए तो सदा बापदादा के दिल में अपना शान प्राप्त करो। ये सब रॉयल इच्छायें प्राप्ति स्वरूप बनने नहीं देती हैं, इसलिए प्रसन्नता की पर्सनालिटी सदा चेहरे और चलन में दिखाई नहीं देती है। किसी भी परिस्थिति में प्रसन्नता की मूड परिवर्तन होती है तो सदाकाल की प्रसन्नता नहीं कहेंगे। ब्राह्मण जीवन की मूड सदा चियरफुल और केयरफुल। मूड बदलना नहीं चाहिए। फिर रॉयल रूप में कहते हैं आज मुझे बड़ी एकान्त चाहिए। क्यों चाहिए? क्योंकि सेवा वा परिवार से किनारा करना चाहते हैं, और कहते हैं शान्ति चाहिए, एकान्त चाहिए। आज मूड मेरा ऐसा है। तो मूड नहीं बदली करो। कारण कुछ भी हो, लेकिन आप कारण को निवारण करने वाले हो, कि कारण में आने वाले हो? निवारण करने वाले। ठेका क्या लिया है? कॉन्ट्रैक्टर हो ना? तो क्या कॉन्ट्रैक्ट लिया है? कि प्रकृति की मूड भी चेंज करेंगे। प्रकृति को भी चेंज करना है ना? तो प्रकृति को परिवर्तन करने वाले अपने मूड को नहीं परिवर्तन कर सकते? मूड चेंज होती है कि नहीं? कभी-कभी होती है? फिर कहेंगे सागर के किनारे पर जाकर बैठते हैं, ज्ञान सागर नहीं, स्थूल सागर। फॉरेनर्स ऐसे करते हैं ना? या कहेंगे आज पता नहीं अकेला, अकेला लगता है। तो बाप का कम्बाइण्ड रूप कहाँ गया? अलग कर दिया? कम्बाइण्ड से अकेले हो गये, क्या इसी को प्यार कहा जाता है? तो किसी भी प्रकार का मूड, एक होता है - मूड ऑफ, वह है बड़ी बात, लेकिन मूड परिवर्तन होना यह भी ठीक नहीं। मूड ऑफ वाले तो बहुत भिन्न-भिन्न प्रकार के खेल दिखाते हैं, बापदादा देखते हैं, बड़ों को बहुत खेल दिखाते हैं या अपने साथियों को बहुत खेल दिखाते हैं। ऐसा खेल नहीं करो। क्योंकि बापदादा का सभी बच्चों से प्यार है। बापदादा यह नहीं चाहता कि जो विशेष निमित्त हैं, वह बाप समान बन जाएं और बाकी बने या नहीं बनें, नहीं। सबको समान बनाना ही है, यही बापदादा का प्यार है। तो प्यार का रेसपान्ड देने आता है कि नाज़-नखरे से रिटर्न करते हो? कभी नाज़-नखरे दिखाते और कभी समान बनके दिखाते हैं। अभी वह समय समाप्त हुआ।

अभी डायमण्ड जुबली मना रहे हो ना? तो 60 साल के बाद वैसे भी वानप्रस्थ शुरू होता है। तो अभी छोटे बच्चे नहीं हो, अभी वानप्रस्थ अर्थात् सब कुछ जानने वाले, अनुभवी आत्मायें हो, नॉलेजफुल हो, पावरफुल हो, सक्सेसफुल हो। जैसे सदा नॉलेजफुल हो ऐसे पावरफुल और सक्सेसफुल भी हो ना? कभीकभी सक्सेसफुल क्यों नहीं होते, उसका कारण क्या है? वैसे सफलता आप सबका जन्म सिद्ध अधिकार है। कहते हो ना? सिर्फ कहते हो या मानते भी हो? तो क्यों नहीं सफलता होती है, कारण क्या है? जब अपना जन्म सिद्ध अधिकार है, तो अधिकार प्राप्त होने में, अनुभव होने में कमी क्यों? कारण क्या? बापदादा ने देखा है - मैजॉरिटी अपने कमजोर संकल्प पहले ही इमर्ज करते हैं, पता नहीं होगा या नहीं! तो यह अपना ही कमजोर संकल्प प्रसन्नचित्त नहीं लेकिन प्रश्नचित्त बनाता है। होगा, नहीं होगा? क्या होगा? पता नहीं.... यह संकल्प दीवार बन जाती है और सफलता उस दीवार के अन्दर छिप जाती है। निश्चयबुद्धि विजयी - यह आपका स्लोगन है ना! जब यह स्लोगन अभी का है, भविष्य का नहीं है, वर्तमान का है तो सदा प्रसन्नचित्त रहना चाहिए या प्रश्नचित्त? तो माया अपने ही कमजोर संकल्प की जाल बिछा लेती है और अपने ही जाल में फँस जाते हो। विजयी हैं ही - इससे इस कमजोर जाल को समाप्त करो। फँसो नहीं, लेकिन समाप्त करो। समाप्त करने की शक्ति है? धीरे-धीरे नहीं करो, फट से सेकण्ड में इस जाल को बढ़ने नहीं दो। अगर एक बार भी इस जाल में फँस गये ना तो निकलना बहुत मुश्किल है। विजय मेरा बर्थराइट है, सफलता मेरा बर्थराइट है। यह बर्थराइट, परमात्म बर्थराइट है, इसको कोई छीन नहीं सकता-ऐसा निश्चयबुद्धि, सदा प्रसन्नचित्त सहज और स्वत: रहेगा। मेहनत करने की भी ज़रुरत नहीं।

असफलता का दूसरा कारण क्या है? आप लोग दूसरों को भी कहते हो कि समय, संकल्प, सम्पत्ति सब सफल करो। तो सफल करना अर्थात् सफलता पाना। सफल करना ही सफलता का आधार है। अगर सफलता नहीं मिलती तो जरूर कोई न कोई खजाने को सफल नहीं किया है, तब सफलता नहीं मिली। खजानों की लिस्ट तो जानते हो ना तो चेक करो-कौन सा खजाना सफल नहीं किया, व्यर्थ गँवाया? तो स्वत: ही सफलता प्राप्त हो जायेगी। यह वर्सा भी है तो वरदान भी है - सफल करो और सफलता पाओ। तो सफल करना आता है कि नहीं? तो सफलता मिलती है? सफल करना है बीज और सफलता है फल। अगर बीज अच्छा है तो फल नहीं मिले यह हो नहीं सकता। सफल करने के बीज में कुछ कमी है तब सफलता का फल नहीं मिलता। तो क्या करना है? सदा प्रसन्नता की पर्सनालिटी में रहो। प्रसन्नचित्त रहने से बहुत अच्छे अनुभव करेंगे। वैसे भी कोई को प्रसन्नचित्त देखते हो तो कितना अच्छा लगता है! उसके संग में रहना, उसके साथ बात करना, बैठना कितना अच्छा लगता है! और कोई प्रश्नचित्त वाला आ जाए तो तंग हो जायेंगे। तो यह लक्ष्य रखो - क्या बनना है? प्रश्नचित्त नहीं, प्रसन्नचित्त।

आज सीज़न का लास्ट दिन है, तो लास्ट में क्या किया जाता है? कोई यज्ञ भी रचते हैं तो लास्ट में क्या करते हैं? स्वाहा करते हैं। तो आप क्या करेंगे? प्रश्नचित्त को स्वाहा करो। यह क्यों होता है? यह क्या होता है? ..... नहीं। नॉलेजफुल हो ना तो क्यों, क्या नहीं। तो आज से यह व्यर्थ प्रश्न स्वाहा। आपका भी टाइम बचेगा और दूसरों का भी टाइम बचेगा। दादियों का भी टाइम इसमें जाता है, यह क्यों, यह क्या, यह कैसे! तो यह समय बचाओ, अपना भी और दूसरों का भी। बचत का खाता जमा करो। फिर 21 जन्म आराम से खाओ, पियो, मौज करो, वहाँ जमा नहीं करना पड़ेगा। तो स्वाहा किया कि सोचेंगे? सोचना है, भले सोच लो। अपने से पूछ लो यह कैसे होगा, यह कर सकेंगे या नहीं? यह एक मिनट में सोच लो, पक्का काम कर लो। अपने से जितने भी प्रश्न पूछने हों वह एक मिनट में पूछ लो। पूछ लिया? स्वाहा भी कर लिया या सिर्फ प्रश्न पूछ लिया? आगे के लिए प्रश्न खत्म। (एक मिनट साइलेन्स के बाद) खत्म किया? (हाँ जी) ऐसे ही नहीं हाँ कर लेना। जब बहुतकाल का अनुभव है कि प्रश्नचित्त अर्थात् परेशान होना और परेशान करना। अच्छी तरह से अनुभव है ना? तो अपने निश्चय और जन्म सिद्ध अधिकार की शान में रहो तो परेशान नहीं होंगे। जब इस शान से परे होते हो, तभी परेशान होते हो। समझा! अच्छी तरह से समझा कि अभी कहेंगे - हाँ समझा और फॉरेन में जायेंगे तो कहेंगे मुश्किल है? ऐसे तो नहीं? अच्छा।

(आज बापदादा के सामने 10 वर्ष से ज्ञान में चलने वाले बैठे हैं) यह सभी 10 वर्ष वाले बैठे हैं, सेरीमनी मनाई? बापदादा 10 वर्ष वाले महावीर और महावीरनियाँ बच्चों को देख हर्षित होते हैं। और मुबारक देते हैं, वरदान देते हैं ‘‘सदा निर्विघ्न भव।’’ जैसे 10 वर्ष हिम्मत रख बाप के साथ और हाथ के आधार पर 10 वर्ष मजबूत रहे हो, ऐसे सदा ही हिम्मत को साथी बनाकर रखना। हिम्मत को नहीं छोड़ना। जहाँ हिम्मत है - वहाँ बाप है ही है। तो बापदादा को खुशी है कि डबल विदेशी भिन्न-भिन्न प्रकार के आकर्षण के स्थान पर रहते हुए भिन्न धर्म और भिन्न प्रकार की कल्चर होते हुए भी ब्राह्मण कल्चर में चलते रहे हैं, यह बहुत हिम्मत का सैम्पल दिखाया है। आपके सैम्पल को देख अनेक आत्मायें लाभ उठायेंगी। इसलिए हिम्मत की भी मुबारक और हिम्मत द्वारा सेवा की भी मुबारक। बापदादा को भी खुशी है आप सबको देख करके। अच्छा।

कहाँ-कहाँ के 10 साल वाले हैं, हाथ उठाओ। (बापदादा सभी से अलग-अलग हाथ उठवाकर मिल रहे हैं) अच्छा, आस्ट्रेलिया वालों की खुशखबरी सुनी। हिम्मत रखी है, सेवा के प्लैन भी अच्छे बनाये हैं और साथ-साथ रिट्रीट हाउस भी ले रहे हैं। आस्ट्रेलिया की भुजायें कितनी हैं? (13) जो आस्ट्रेलिया के सम्बन्ध में एशिया है वह हाथ उठाओ। 13 भुजायें हैं, तो भुजायें क्या करती हैं? सहयोग देती हैं। तो यह 13 भुजायें क्या करेंगी? सिर्फ देखकर, सुनकर खुश होंगी? नहीं। आस्ट्रेलिया निवासियों की सेवा का रिटर्न सभी भुजाओं को यथा शक्ति देना है। पालना लेते हो ना! तो पालना का रिटर्न देना - यह एक फर्ज है। समझा। भुजाओं ने समझा? अच्छे हैं। एशिया का ग्रुप तो बहुत अच्छा है। एशिया नजदीक भी है ना! इण्डिया भी एशिया में आता है। एशिया में हेडक्वार्टर है। तो एशिया वालों को एक्स्ट्रा नशा होना चाहिए कि एशिया में बापदादा आता है। लण्डन, अमेरिका में नहीं आता। बापदादा को एशिया प्यारा है। देखो यूरोप की महिमा अपनी है और एशिया की महिमा अपनी है। यूरोप सभी डबल विदेशियों का फाउण्डेशन स्थान है। सेवा का आरम्भ यूरोप में हुआ है। चाहे यू.के. कहो, चाहे यूरोप कहो, लेकिन बापदादा का आना एशिया में हुआ। अच्छा।

अच्छा 10 वर्ष वाले हाथ उठाओ। वैसे तो बहुत होंगे लेकिन इस ग्रुप को चांस मिला है। यह भी लक है। अच्छा है, पाण्डव भी काफी हैं। तो 10 वर्ष वालों को बापदादा और सर्व परिवार की तरफ से पद्मगुणा मुबारक हो। अच्छा।

अभी अगली सीज़न क्या होगी-यह प्रश्न है? यह काम का प्रश्न है इसलिए भले पूछो, फालतू प्रश्न नहीं। तो बापदादा का ड्रामा-प्लैन अनुसार यह प्लैन है कि यह वर्ष डायमण्ड जुबली का है और डायमण्ड जुबली की सेवा का उमंग- उत्साह चारों ओर देश-विदेश में अच्छा है और अच्छा रहेगा। अच्छा होना ही है। इसलिए यह वर्ष जितना जी भर करके सेवा करने चाहो उतनी करो, इस वर्ष में चाहे भारत, चाहे विदेश में कई बच्चों का उमंग-उत्साह है कि यथाशक्ति बड़े-बड़े प्रोग्राम करें। और जब बड़े प्रोग्राम करते हैं तो बड़ों को बुलाते हैं। तो बापदादा का प्लैन है कि इस वर्ष जो ऐसे योग्य प्रोग्राम होंगे, ऐसे नहीं मकान की ओपानिंग है तो दादी आवे, ऐसे नहीं लेकिन डायमण्ड जुबली के कनेक्शन में जो भी, जहाँ भी, प्रोग्राम योग्य होगा, वहाँ दादियाँ जा सकती हैं। लेकिन....लेकिन है। दादियों की तबियत से सबको प्यार है ना कि सिर्फ सेवा से है? सेवा से प्यार है या इनकी तबियत से भी प्यार है? दोनों से है ना। इसलिए स्वयं भी सोच समझकर निमन्त्रण दो, ऐसे नहीं कि आना ही है, नहीं तो हम नाराज हो जायेंगे। रोना शुरू कर देते हैं, ऐसा नहीं करो। देखो एक तरफ यज्ञ के, घर के सभी मालिक हो। ऐसे नहीं हम तो छोटे हैं, हमको क्या मालुम, हम तो अपने घर में थे। नहीं। विश्व के जिम्मेवार हो। कल ताज पहना था ना? ( कल 10 साल वालों को सेरीमनी में ताज पहनाया गया था) तो जिम्मेवारी का ताज था या गत्ते का था? सभी ने जिम्मेवारी का ताज पहना ना! तो जब भी कोई प्रोग्राम बनाते हो तो यज्ञ को भी देखो, क्योंकि आज मधुबन आपको आकर्षण क्यों करता है? आपके सेन्टर्स भी तो ज्ञान योग वाले हैं, लेकिन मधुबन क्यों आकर्षित करता है? क्योंकि ब्रह्मा बाप की तपस्या, उसकी स्थिति का स्थान है। तो जो निमित्त बड़ी दादियां हैं, उन्हों को यज्ञ का वातावरण, यज्ञ की कारोबार - उसको भी देखना है और आप भी सब जिम्मेवार हैं। नहीं तो मधुबन में जो भी आते हैं और वातावरण से खुश होकर जाते हैं, उसका कारण क्या है? बड़ों की स्थिति का स्थान पर प्रभाव पड़ता है। तो यह भी देखो, क्योंकि यज्ञ (मधुबन) का वातावरण चारों ओर फैलता है। आप सबको शक्ति मधुबन के स्थान से ही मिलती है। तो मधुबन की कारोबार, सेवायें, वातावरण, साथ-साथ दादियों की तबियत उसको भी देखो, फिर प्रोग्राम बनाओ। जब आप कहते हो आओ, और फिर किसी का भी प्रोग्राम कैन्सिल होता है तो थोड़ा बहुत स्थितियों में भी फर्क पड़ता है इसलिए पहले से ही सोच-समझकर नॉलेजफुल होकर, जिम्मेवार होकर फिर प्रोग्राम बनाओ। समझा। इसके लिए बापदादा यह पूरी सीज़न सेवा के लिए छुट्टी दे रहे हैं और बापदादा की सीज़न और बाहर की सेवा का बुलावा-यह दोनों में खींचातान हो जाती है इसलिए इस सीज़न में बापदादा, अगर दिसम्बर में नीचे का तैयार हो जाता है और उसका उद्घाटन होना ही है, तो दिसम्बर में फॉरेन और इण्डिया दोनों के संगठन का प्रोग्राम शान्तिवन का आरम्भ करेंगे। फॉरेन वाले ऊपर रहें, इण्डिया वाले नीचे रहें, डबल चांस मिलेगा। आप डबल विदेशी नीचे रहेंगे? पट में सोना पड़ेगा? अपने अटैचियों को तकिया बनाना, जगह चाहिए ना। तो बापदादा इस सीज़न में अर्थात् दूसरी सीज़न जो शुरू होगी उसमें दिसम्बर में आयेंगे और दिसम्बर के बाद फिर 18 जनवरी इण्डिया वालों के लिए और तीसरा फॉरेन वालों के लिए शिवरात्रि पर आयेंगे। और चौथा अगर प्रबन्ध ठीक रहा तो शिव रात्रि के बाद अप्रैल के आदि में एक फिर से मेला रखेंगे। जिसमें फॉरेन वाले भी हों और इण्डियन भी हों। तो दूसरी सीज़न का प्लैन यह है। जिसको जितनी सेवा करनी है वह दिल से करो। और योग्य अटेन्शन रखके दादियाँ भी भले चक्कर लगायें लेकिन पहले तबियत फिर सेवा। खींचातान नहीं करो। अभी टाइम काफी है इसलिए उस अनुसार एक तो चक्कर लगाओ और दूसरा ब्राह्मणों के रिफ़्रेशमेंट की, जो बापदादा ने कहा कि कर्मातीत बनने का, अशरीरी बनने का अभ्यास करो-तो इसके लिए ग्रुप वाइज़ ब्राह्मणों का संगठन यहाँ रख सकते हो। हर मास का अलग-अलग प्रोग्राम बनाओ, जो सेवा भी हो और ब्राह्मणों की रिफ़्रेशमेंट भी हो। बाकी एक ही वर्ष में खींचातान से फॉरेन में जाना ही है, ऐसी खींचातान नहीं करो। आराम से बनाओ, अभी आगे का समय भी बहुत है इसलिए इस वर्ष में वा इस सीज़न में एक चक्कर फॉरेन का फिर दूसरे समय में दूसरा चक्कर बनाओ तो आराम से, स्नेह से, सेवा और दादियों के तबियत का बैलेन्स रखो। समझा! तो दूसरी सीज़न का यही प्लैन है, फिर आगे देखेंगे। क्योंकि वर्तमान समय चाहे देश में, चाहे विदेश में हलचल भी होनी ही है। तो जितना सेवा का चांस ले सकते हो उतना ले लो। समझा! (ड्रिल)

एक सेकण्ड में अशरीरी बनना-यह पाठ पक्का है? अभी-अभी विस्तार, अभी-अभी सार में समा जाओ। (बापदादा ने फिर से ड्रिल कराई) अच्छा-इस अभ्यास को सदा साथ रखना।

चारों ओर के सर्व प्रश्नचित्त से परिवर्तन होने वाले, सदा प्रसन्नचित्त के पर्सनालिटी वाले श्रेष्ठ आत्मायें, सदा अपने विजय और जन्म सिद्ध अधिकार के स्मृति में रहने वाले, स्मृति स्वरूप विशेष आत्मायें, सदा सफल करने से सहज सफलता का अनुभव करने वाले, बाप के समीप आत्माओं को बापदादा का याद प्यार और नमस्ते। जो डबल विदेश के चारों ओर के 10 वर्ष वाले बच्चे हैं उन्हों को विशेष मुबारक और याद-प्यार।

दादियों से

बापदादा को आप परिवार के सिरताज निमित्त आत्माओं के लिए’’ सदा जीते रहो, उड़ते रहो और उड़ाते रहो’’-यह संकल्प सदा रहता है। अपने योग की तपस्या के शक्ति से शरीरों को चला तो रहे हो लेकिन आपसे ज्यादा बापदादा को ओना रहता है। इसलिए समय प्रमाण फास्ट चक्कर नहीं लगाओ। आराम से जाओ और आओ क्योंकि दुनिया की परिस्थितियाँ भी फास्ट बदल रही हैं। इसलिए सेवा की बापदादा मना नहीं करते हैं, लेकिन बैलेन्स। सभी के प्राण आपके शरीरों में हैं, तन ठीक है तो सेवा भी अच्छी होती जायेगी। इसलिए सेवा खूब करो लेकिन ज्यादा धक्का नहीं लगाओ, थोड़ा धक्का लगाओ। ज्यादा धक्का लगाने से क्या होता है? बैटरी स्लो हो जाती है। इसलिए बैलेन्स अभी से रखना आवश्यक है। ऐसे नहीं सोचो यह वर्ष तो कर लें, दूसरा वर्ष पता नहीं क्या है? नहीं। जीना है और उड़ाना है। अभी तो आपका पार्ट है ना? तो अपने पार्ट को समझकर धक्का लगाओ लेकिन बैलेन्स में धक्का लगाओ। ठीक है। फास्ट नहीं बनाओ, दो दिन यहाँ है तो तीसरे दिन वहाँ हैं, नहीं। अभी वह टाइम नहीं है, जब ऐसा टाइम आयेगा तो एक दिन में चार-चार स्थान पर भी जाना पड़ेगा लेकिन अभी नहीं।

(सभा से) आप सबका क्या विचार है? ठीक है ना? (निर्मला बहन से) अच्छा है चारों ओर एशिया को अच्छा सम्भाला है। पार्ट भी सेवा का अच्छा बजाया है। चाहे यूरोप ने, चाहे आस्ट्रेलिया ने, चाहे अफ्रीका ने..सभी ने बहुत अच्छा ज़िम्मेवारी से पार्ट बजाया है और जितना अटेन्शन दिया उसका प्रत्यक्षफल सफलता भी मिली। ऐसे नहीं कि आस्ट्रेलिया की ड्यूटी थी, उन्हों ने किया। नहीं, सभी तरफ के डबल विदेशियों ने अच्छी-अच्छी आत्मायें मधुबन तक लाई और सफलता पाई। बैकबोन में सभी साथी रहे और सदा रहना ही है। (इस बार जर्मनी बहुत आया है) अच्छा है जैसे आस्ट्रेलिया वालों ने प्रत्यक्ष परिवर्तन का स्वरूप दिखाया, ऐसे जर्मनी वालों को ऐसा प्रत्यक्ष स्वरूप दिखाना है जो हर एक सेन्टर सबसे अच्छा और संख्या में भी सबसे नम्बरवन हो। अभी जर्मन की कमाल देखेंगे। सारे ब्राह्मण परिवार की नज़र जर्मनी पर है। क्योंकि भविष्य में जर्मन बहुत सहयोगी बनने वाली है। अभी भी मददगार है, मुबारक हो। अभी ऐसी कमाल करके दिखाना जो किसी ने नहीं किया हो, लण्डन ने भी नहीं किया हो। (लण्डन वालों ने त्याग किया है, सुदेश बहन को वहाँ सेवा पर भेजा है) यह त्याग नहीं है, भाग्य है। लण्डन वालों ने अपना भाग्य बनाया है कि त्याग किया है? जो पढ़ाया है उसका फल भी तो देना है। तो फल है - दूसरों को सहयोग देना। यह लण्डन के ही तो कमरे हैं। लण्डन है हाल और बाकी सब हैं कमरे। कोई बड़े कोई छोटे। खुश हैं ना? अच्छा।

टीचर्स हाथ उठाओ, बहुत हैं। (आज पीछे बैठी हैं) दूर होते भी समीप हो। शरीर से दूर हो लेकिन दिल से बहुत समीप हो। टीचर्स अच्छी मेहनत कर रही हैं। चारों ओर की टीचर्स मेहनत और हिम्मत का प्रत्यक्ष रूप दिखा रही हैं। अच्छा।

जयन्ती बहन (लण्डन), मोहिनी बहन (अमेरिका)

(बाबा को थैंक्स) बच्चों की हिम्मत और बाप की मदद। पहला कदम - बच्चों की हिम्मत और पद्मगुणा बाप की मदद। अच्छी रेसपान्सिबिलिटी उठाई है और आगे भी बढ़ता रहेगा। अच्छा चल रहा है, प्लैन अच्छा बनाया है। अच्छा।